भारत में नारी शिक्षा का महत्व नारी शिक्षा पर निबंध व नारे
भारत में नारी शिक्षा का महत्व नारी शिक्षा पर निबंध व नारे
भारत मे वैदिककाल से ही स्त्रियों के लिए शिक्षा का व्यापक प्रचार माना गया है भारत मे ऐसा समय भी आया जब शूद्र जाति स्त्री के लिये वेदो को पढ़ना निषिद कर दिया गया था। परन्तु यह धारणा बहुत दिनो तक स्थिर न रह सकी। मुगलकाल में भी अनेक महिला विदुषियों का उल्लेख मिलता है। पुनर्जागरण के दौर में भारत में स्त्री शिक्षा को नए सिरे से महत्व मिलने लगा। ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वार सन १८५४ में स्त्री शिक्षा को स्वीकार किया गया था। विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के कारण साक्षरत के दर 0.२% से बदकर ६% तक पहुँच गई । कलकता के विश्वविद्यालय महिला को शिक्षा के लिए स्वीकार करने वाला पहला विश्वविद्यालय था। १९८६ में शिक्षा संबंधी राष्ट्रीय नीति प्रत्येक राज्य को सामाजिक रूपरेखा के साथ शिक्षा का पुनर्गठन करने का निर्णय लिया था। शिक्षा लोकतंत्र के लिए जरूरी हो गया था और महिलाओं के हालात में बदलाव लाने के लिये ज़रूरि था।
स्त्री शिक्षा के लिए पहला महिला विश्वविद्यालय
स्त्री शिक्षा के लिए पहला महिला विश्वविद्यालय जोन इलियोट खोला था सन् १८४९ में और उस विश्वविद्यालय क नाम बीथुने कालेज था। सन १९४७ से लेकर भारत सरकार पाठशाला में अधिक लड़कियों को पड़ने और अधिक लड़कियों को पाठशाला में दाखिला करने के लिये और उनका स्कूल में उपस्थिति बढ़ाने कि कोशिश में अनेक योजनाएं बनाये हैं जैसे नि: शुल्क पुस्तकें, दोपहर की भोजन। सन् १९८६ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को पुनर्गठन देने को सरकार ने फैसला किया। सरकार ने राज्य कि उन्नती की लिये, लोकतंत्र की लिये और महिलाओं का स्थिति को सुधारने की लिये महिलाओं को शिक्षा देना ज़रूरी सम्ज था। भारत की स्वतंत्र की बाद सन् १९४७ में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग को बनाया गया सिफारिश करने की महिला कि शिक्षा में गुणवता में सुधार लिया जाए। भारत सरकार ने नूतन में ही महिला साक्षारता की लिये साक्षर भारत मिशन की शुरूआत की है इस मिशन में महिला कि अशिक्षा की दर को नीचे लाने कि कोशिश किया जाता है। बुनियादि शिक्षा उन्हें पसंद है और अपने स्वयं के जीवन और शरीर पर फैसला करने का अधिकार देने, बुनियादी स्वास्थ्य, पोषण और परिवार नियोजन की समझ के साथ लड़कियों और महिलाओं को प्रदान करता है। लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा गरीबी पर काबू पाने में एक महत्वपूर्ण कदम है। कुछ परिवारों का काम कर रहे पुरुषों दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटनाओं में विकलांग हो जाते हैं। उस स्थिति में, परिवार का पूरा बोझ परिवारों की महिलाओं पर टिकी रह्ते हैं। इस ज़रूरती महिलाओं को पूरा करने के लिए उन्हे शिक्षित किया जाना चाहिए। वे विभिन्न क्षेत्रों में नियोजित किया जाना चाहिए। महिला शिक्षकों, डॉक्टरों, वकीलों और प्रशासक के रूप में काम कर सकते हैं। शिक्षित महिलाओं अच्छी मां हैं। महिलाओं की शिक्षा से दहेज समस्या, बेरोजगारी की समस्या, आदि सामाजिक शांति को आसानी से स्थापित किया जा सकता है।
भारत में नारी शिक्षा पर निबंध (Essay on Women Education )
स्त्री परिवार की धुरी होती है। अगर एक स्त्री को शिक्षा दी जाए तो पूरा परिवार शिक्षित होता है।”वह माँ होती है। एक शिक्षित माँ अपने बच्चों में शिक्षा और संस्कार तो देती ही है, आज भारत में लड़कियों के लिए अनेक विद्यालय , महाविद्यालय और विश्वविद्यालय खोलें जा रहें हैं ताकि नारी भी शिक्षा ग्रहण कर सकें महिलाओं को शिक्षित बनाने का वास्तविक अर्थ हैं उसे प्रगतिशील और सभ्य बनाना , ताकि उसमें तर्क –शक्ति का विकास हो सके।
मुसलमानी सभ्यता के बीच परदे की प्रथा के कारण नारीशिक्षा भारत में लुप्तप्राय हो गई । केवल अपवाद रूप से समृद्ध मुसलमान परिवार की महिलाएँ ही घर पर शिक्षा ग्रहण करती थीं । इन में नूरजहाँ, जहाँआरा तथा जेबुन्निसा के नाम प्रसिद्ध हैं । हिंदुओं में बालविवाह, सती की प्रथा इत्यादि कारणों से बहुसंख्यक नारियाँ शिक्षा से वंचित रहीं ।नारी तथा पुरुष की शिक्षा उनके आदर्शो के अनूकुल होनी चाहिए । इसी समय से मुसलमान नारियों ने भी उच्च शिक्षा में पदार्पण किया । नारी की प्राविधिक शिक्षा में कला, कृषि, वाणिज्य आदि का भी समावेश हुआ और नारी की उच्च शिक्षा में प्रगति हुई । धन के अभाव में लड़कियों के लिए पृथक कॉलेज तो अधिक न खुल सके किन्तु राजनीतिक आन्दोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेने से नारी सहशिक्षा की और अग्रसर हुई
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् यद्यपि नारी शिक्षा में पहले की अपेक्षा बहुत प्रगति हुई तथापि अन्य पाश्चात्य देशों की समानता वह न कर सकीं । इस समय से नारी शिक्षा में संगीत एवं नृत्य की विशेष प्रगति हुई । सन् १९४८-४९ के विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने नारीशिक्षा के संबंध में मत प्रकट करते हुए कहा कि नारी विचार तथा कार्यक्षेत्र में समानता प्रदर्शित कर चुकी है, अब उसे नारी आदर्शो के अनुकूल पृथक रूप से शिक्षा पर विचार करना चाहिए ।
लड़कियों के लिए एक ऐसा विद्यालय खोला जाए जो पूर्ण रूप से भारतीय जीवन के आदर्शो के अनुकूल हो तथा उसका समस्त प्रबंध स्त्रियाँ स्वयं करें । अत: दिल्ली में ही लेडी अर्विन कालेज की स्थापना हुई जिसमें गृहविज्ञान तथा शिक्षिका प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान दिया गया । सन् १९४६-४७ में प्राइमरी कक्षाओं से लेकर विश्वविद्यालय तक की कक्षाओं मैं अध्ययन करने वाली छात्राओं की कुल संख्या ४१ हो गई । इनमें प्राविधिक एवं व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करनेवाली छात्राएँ भी थीं ।
अगर नारी पढ़ी लिखी होगी तो वो समाज के कार्यो में योगदान दे सकती हैं ।परन्तु बदलते वक़्त ने सब कुछ बदल दिया स्त्री को शिक्षा के अधिकार से वंचित होना पड़ा । स्त्री पढ़ेगी तो वो अपने पति के काम में अपना योगदान दे सकेगी, परिवार को सुचारू रूप से चला पाएगी। उसे दूसरों पर आश्रित नहीं रहना पड़ेगा और अपने कर्तव्यों और अधिकारों के प्रति भी सजग रहेगी ।शिक्षा के कारण ही नारी सशक्त और आत्मनिर्भर बनकर अपने व्यक्तित्व का उचित रूप से विकास कर सकती है, परन्तु आज नारी क्षेत्र की मुख्य बाधाएँ हैं –महिलाओं का अशिक्षित होना, अधिकारों के प्रति उदासहीनता ,सामाजिक कुरीतियां तथा पुरुषों का महिलाओं पर स्वामित्व इन सभी समस्याओं से छुटकारा एक नारी पाना चाहती हैं तो उसका एकमात्र साधन हैं शिक्षा ।
वर्तमान समय में यह महसूस किया जा रहा है कि नारी शिक्षा को शिक्षा दिलवाने में ठोस कदम उठाने होंगे तभी समान विकास हो पायेगा । इसलिए नारी-शिक्षा की दिशा में लगातार प्रयास किया जा रहें हैं । यदि नारी शिक्षित होगी तो वह अपने परिवार को ज्यादा अच्छी तरह से चला सकेगी। एक अशिक्षित नारी न तो स्वयं का विकास कर सकती है और न ही परिवार के विकास में सहयोग दे सकती हैं । इसलिए आज समाज नारी की शिक्षा पर ध्यान दें रहा हैं और उसे शिक्षित कर रहा हैं , ताकि देश उन्नति के पथ पर आगे बढ़े ।लड़कों की ही तरह लड़कियों को भी समग्र शिक्षा मिलनी चाहिए। वह शिक्षा जिसमें उनकी रुचि हो, जो उनके भविष्य के लिए नई राह खोलती हो, साथ ही, उसे अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान देती हो।
देश की तरक्की में साक्षर नारी का योगदान
महिलाओं के शिक्षित होने से न केवल बालिका-शिक्षा को बढ़ावा मिला, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य और सर्वांगीण विकास में भी तेजी आई है। महिला साक्षरता से एक बात और सामने आई है कि इससे शिशु मृत्यु दर में गिरावट आ रही है और जनसंख्या नियंत्रण को भी बढ़ावा मिल रहा है। हालाँकि इसमें और प्रगति की गुंजाइश है। स्त्री-पुरुष समानता के लिए जागरूकता जरूरी है। सरकार ने औरतों की शिक्षा के लिए कई नीतियाँ तैयार की, जिसके कारण महिला साक्षरता में जबर्दस्त उछाल आया। आजादी के केवल तीन दशक बाद इसमें पुरुषों की साक्षरता दर की अपेक्षा तेज गति से वृद्धि हुई। सन 1971 में जहाँ केवल 22 फीसदी महिलाएँ साक्षर थीं, वहीं सन 2001 तक यह 54.16 फीसदी हो गया। इस दौरान महिला साक्षरता दर में 14.87 फीसदी की वृद्धि हुई और वहीं पुरुष साक्षरता दर में वृद्धि 11.72 फीसदी ही रही। लेकिन इस क्षेत्र में और तेजी की दरकार है। भारत के दूरदराज के इलाकों की बात तो दूर बड़े शहरों में भी लड़कियों को उच्चतर शिक्षा के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। जहाँ 2001 की जनसंख्या में पुरुषों की साक्षरता 75 फीसदी थी, वहीं महिला साक्षरता महज 54 फीसदी थी। वैसे साक्षरता दर में आई तेजी से उम्मीद की जा सकती है कि आने वालों दिनों में इसमें और तेजी आएगी।
नारी शिक्षा का महत्त्व:(Importance on Women Education )
प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित होना चाहिये, परन्तु नारी का शिक्षित होना, पुरुष से भी अधिक महत्त्वपूण है । नारी शिक्षा का महत्त्व केवल आजीविका के लिये ही नहीं है, आपितु जीवन के हर क्षेत्र में नारी का शिक्षित होना अत्यन्त अनिवार्य है ।शिक्षित नारी अपनी सतान को बाल्यकाल से ही प्रगति की ओर ले जाने में सक्ष्म है । एक ग्रहणी के रूप में नारी घर का कुशल सचालन करने में समर्थ होती है । एक पुरुष की सहभागिनी होने के नाते शिक्षित नारी एक योग्य व दूरदर्शी सलाहकार होती है ।इसलिए शिक्षित नारी आजीविका भी जुटा सकती है और जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष की योग्य सहायिका सिद्ध होती है । शिक्षित नारी एक सभ्य समाज का द्योतक है । आज की नारी हर क्षेत्र मे भाग लेकर पुरुष से भी आगे पहुँच रही है ।
साक्षरता नारे (Slogan)
1. पढ़ी लिखी जब होगी माता, घर की बनेगी भाग्य विधाता।
2. शिक्षा है, अनमोल रतन,पढ़ने का सब करो जतन।
3. पढ़ेंगे और पढ़ायेंगे, उन्नत देश बनायेंगे।
4. साक्षरता ही है श्रंगार हमारा ,वरना व्यर्थ है जीवन सारा।
5. शिक्षा का धन सबसे न्यारा, कभी न हो इसका बटवारा।
6. भूख गरीबी और अज्ञान, पढ़कर खत्म करे इन्सान।
7. नर- नारी की एक आवाज, पढ़ा लिखा हो जाए समाज।
8. शिक्षा पाना हक है सबका यह सबको समझाओ, घर की बहू बेटियों को भी अब साक्षर करवाओ।
9. खुद पढ़ो औरों को पढ़ाओ, जो सोए हैं उन्हे जगाओ।
10. स्वयं पढ़ो औरों को पढ़ाओ, जीवन को खुशहाल बनाओ।
11. होगा तब ही राष्ट्र महान, पढ़ा लिखा हो हर इन्सान।
12. जाग उठे हैं नर और नारी, शिक्षित होने की है तैयारी।
13. एक महिला को शिक्षत करना, एक परिवार को शिक्षित करना है।
14. पढ़ी- लिखी लड़की, रोशनी है घर की।
15. बेटी हो बेटा, दोनों को है पढ़ाना।
16. कोर्इ किसी से कम नहीं, दोनो को है आगे बढ़ाना।
17. बहुत हुआ अब चूल्हा चौका, लड़कियों को दो पढ़ने का मौका।
18. जहाँ न हो साक्षरता का वास, कैसे हो उस देश का विकास।
19. बेटी का मान बढ़ाना है, हर हाल में उसे पढ़ाना है।
20. हर महिला को शिक्षित बनाओ, परिवार में खुशहाली लाओ।
21. पढ़ना है मुझे पढ़ना है, हर दम आगे बढ़ना है।
22. जन- जन को अब ये समझाओ, नर और नारी सब को पढ़ाओ।
23. नारी को भी पढ़ना है, शान से आगे बढ़ना है।
24. किताबों से प्यार बढ़ाओ, ताकि पढ़ना भूल न जाओ।
25. किताबों को हथियार बनाओ, ज्ञान निरंतर पाते जाओ।
26. नर्इ किताब पुरानी हो, नित नइ कहानी हो, प्रेरक की यही बानी हो, शिक्षा बहता पानी हो।
27. जो अनपढ़ रह जाएगा, वह एक दिन पछताएगा।
28. जिसको आगे बढ़ना है पहले उसको पढ़ना है।
29.पढिये, कभी भी, कहीं भी।
30. सब पढे़, सब बढ़े।
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