पंद्रह अगस्त की पुकार – Atal Bihari Vajpayee Best Poems in Hindi
पंद्रह अगस्त की पुकार – Atal Bihari Vajpayee Poems in Hindi
- पंद्रह अगस्त के बारे में अटल बिहारी वाजपेयी की देश भक्ति कविता
1.पंद्रह अगस्त की पुकार
पंद्रह अगस्त का दिन कहता
आज़ादी अभी अधूरी है|
सपने सच होने बाकी है,
रावी की शपथ न पूरी है|
2.जिनकी लाशों पर पग धर कर
आज़ादी भारत में आई
वे अब तक हैं खानाबदोश
ग़म की काली बदली छाई
कलकत्ते के फुटपाथों पर
जो आँधी-पानी सहते हैं|
उनसे पूछो, पंद्रह अगस्त के
बारे में क्या कहते हैं|
हिंदू के नाते उनका दु:ख
सुनते यदि तुम्हें लाज आती
तो सीमा के उस पार चलो
सभ्यता जहाँ कुचली जाती
इंसान जहाँ बेचा जाता
ईमान ख़रीदा जाता है|
इस्लाम सिसकियाँ भरता है
डालर मन में मुस्काता है|
भूखों को गोली नंगों को
हथियार पिन्हाए जाते हैं|
सूखे कंठों से जेहादी
नारे लगवाए जाते हैं|
लाहौर, कराची, ढाका पर
मातम की है काली छाया
पख्तूनों पर, गिलगित पर है|
ग़मगीन गुलामी का साया
बस इसीलिए तो कहता हूँ|
आज़ादी अभी अधूरी है
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं?
थोड़े दिन की मजबूरी है
दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन: अखंड बनाएँगे
गिलगित से गारो पर्वत तक
आज़ादी पर्व मनाएँगे
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से
कमर कसें बलिदान करें
जो पाया उसमें खो न जाएँ
जो खोया उसका ध्यान करें|
3.दूध में दरार पड़ गई
खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया|
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई|
दूध में दरार पड़ गई|
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद|
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है|
वसंत से बहार झड़ गई|
दूध में दरार पड़ गई|
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता|
बात बनाएं, बिगड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई|
4.गीत नहीं गाता हूँ
बेनकाब चेहरे हैं,
दाग बड़े गहरे हैं,
टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ |
गीत नही गाता हूँ |
लगी कुछ ऐसी नज़र,
बिखरा शीशे सा शहर,
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ |
गीत नहीं गाता हूँ |
पीठ मे छुरी सा चाँद,
राहु गया रेखा फाँद,
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ |
गीत नहीं गाता हूँ |
5.आओ फिर से दीया जलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दूपहरी में अधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़े
बुझी हुई बाती सुलगाएं
आओ कि से दीया जलाएं|
हम पड़ाव को समझे मंजिल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में
आने वाला कल न भुलाएँ
आओ कि से दीया जलाएं|
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने
नव दधीचि हड्डियां गलाए
आओ कि से दीया जलाएं|
6.कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा|
कदम मिलाकर चलना होगा|
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा|
कदम मिलाकर चलना होगा|
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा|
कदम मिलाकर चलना होगा|
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा|
कदम मिलाकर चलना होगा|
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा|
क़दम मिलाकर चलना होगा|
7.यक्ष प्रश्न
जो कल थे,
वे आज नहीं हैं|
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे|
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा|
सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है|
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर,
बुद्धि के व्यायाम हैं|
किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है|
प्रत्येक नया नचिकेता,
इस प्रश्न की खोज में लगा है|
सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है|
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा|
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है?
हाँ, खोज का सिलसिला न रुके,
धर्म की अनुभूति,
विज्ञान का अनुसंधान,
एक दिन, अवश्य ही
रुद्ध द्वार खोलेगा।
प्रश्न पूछने के बजाय
यक्ष स्वयं उत्तर बोलेगा|
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का प्रसिद्ध भाषण :
आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं और भारत पुनः स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक क़दम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है निर्धनता, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे। संभवतः ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों कि आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा। आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहाँ जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, किसानों और श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम निर्धनता मिटा, एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें। हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके? कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।