गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा को दीपावली पर्व का हिस्सा माना जाता हैं | यह दिवाली के दुसरे दिन अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती हैं| कई जगह इसे अन्न कूट के नाम से जाना जाता हैं | यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता हैं | इस दिन गोवर्धन पूजा में गोधन यानि गायों की पूजा की जाती हैं | यह पर्व मानव जीवन व प्रकृति से सीधा सम्बन्ध बनाता हैं | भारतीय धार्मिक शास्त्रों व पुराणों में गाय को उसी तरह पूज्यनीय व पवित्र माना गया हैं जैसे गंगा नदी को माना जाता हैं |
गाय को हिदू धर्म में ही नही बल्कि पुरे देश में आदर्श के साथ के साथ पूजा जाता हैं | गाय में सभी देवताओ का निवास माना जाता हैं , जिस घर में गाय का निवास होता हैं वहाँ पर साक्षात लक्ष्मी का वास माना जाता हैं | गाय अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं | और इनके बछड़े से खेतो में हल चलाकर अनाज पैदा किया जाता हैं | अगर माना जाय तो गाय की महिमा अथाह ,अपार हैं |
वेदों में इस दिन वरुण, इन्द्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। इसी दिन बलि पूजा, गोवर्धन पूजा, मार्गपाली आदि होते हैं। इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर, फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है। यह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। उस समय लोग इन्द्र भगवान की पूजा करते थे तथा छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाया जाता था। ये पकवान तथा मिठाइयां इतनी मात्रा में होती थीं कि उनका पूरा पहाड़ ही बन जाता था।
गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त
सुबह 6:40 से 8:00 बजे तक- शुभ
सुबह 10:45 से दोपहर 12:05 बजे तक- चल
दोपहर 12:05 से 01:30 बजे तक- लाभ
शाम 4:20 से 5:40 बजे तक- शुभ
शाम 5:40 से 7:20 बजे तक- अमृत
शाम 7:20 से रात 8:50 बजे तक- चल
गोवर्धन पूजा कथा
गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक पौराणिक व लोककथा मानी जाती हैं | प्राचीन समय की बात हैं की ब्रजवासी उत्तम पकवान बना रहे थे | और किसी देव की पूजा की तैयारी में जुटे हुए थे | भगवान श्री कृष्ण में अपनी माता यशोदा से पूछने लगे की आप किसकी पूजा के लिए इतनी सारी मिठाई ,सजावट की जा रही हैं कृष्ण की बाते सुनकर मैया बोली की लल्ला देवराज इंद्र की पूजा के लिए सारी तैयारी हो रही हैं ,मैया के ऐसा बोलने से भगवान् कृष्ण बोले की इंद्र की पूजा हम क्यों करे ,माता यशोदा ने कहा की वे वर्षा करते हैं जिससे अनाज की पैदा होती हैं ,और हमारी गायों के लिए चारा पानी मिलता हैं | भगवान अपनी माता से बोले की हमे सभी को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योकि हारी गाये वही पर चरती हैं | तो हमारे लिए तो गोवर्धन ही पूज्यनीय हैं इंद्र तो कभी दर्शन भी नही देते और पूजा करने पर क्रोधित होते हैं | तो हम ऐसे अहंकारी की पूजा किस काम की |
यह सब देखकर इंद्र देव में क्रोध व इर्ष्या की ज्वाला भडक उठी और उसने मूसलाधार बारिस करना शुरू कर दिया | मूसलाधार बारिस के सभी जानवर नगरवासी परेशानी को लेकर भगवान् कृष्ण के पास जाकर बोले अब कहो पाने गोवर्धन से इस मूसलाधार बारिस से हमारी सहायता करे | तो भगवान् श्री कृष्ण ने अपने सबसे छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सारे ब्रजवासियो की रक्षा की दूसरी तरफ इंद्र ने अपने क्रोध की ज्वाला की और अधिक भडकने के कारण तेज बारिस करने लगे साथ में तूफ़ान शुरू कर दिया लेकिन भगवान कृष्ण ने सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को निचे नही रखा |
इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। इंद्र लगातार सात दिनों तक मूसलाधार वर्षा करने के बाद में उन्हें अहसास हुआ की उनका मुकाबला करने वाला कोई साधरण मनुष्य नही तब इंद्र ब्रह्म देव के पास गये और सारा व्रतांत सुनाया तो उन्होंने कहा की आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान् विष्णु का साक्षात अंश हैं पुरषोंतम नारायण भगवान हैं | ब्रह्मा जी के मुख से यव शब्द सुनकर इंद्र बहुत लज्जित हुए और कृष्ण से माफ़ी मांगते हुए कहा की मैं आपको पहचान नही सका इस भूल के लिए मुझे माफ़ करे | भगवान् कृष्ण ने इंद्र को माफ़ किया इसके पश्चात देवराज इंद्र ने मुरली धर की पूजा करके भोग लगाया |
इस पौराणिक घटना के बाद में गोवर्धन पूजा की परम्परा शुरू हुई | ब्रजवासी इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं गाय बैल को इस दिन स्नान करकर उन्हें रंग लगाया जाता हैं उनके गले में नई रस्सी बाँधी जाती हैं | गाय बेलो को गुड चावल मिलाकर खिलाया जाता हैं |